इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद और उसका मूल कारण ( भाग-1) मे आप ने पढ़ा की तमाम संधियों और युद्धों के बाद भी किस प्रकार इज़राइल और फिलिस्तीन का विवाद अब अरबों यहूदियों,यूरोप और संयुक्त राष्ट्र के बीच एक जटिल समस्या बन गया ॥ भाग 1 पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
अरब बिद्रोह के बाद ब्रिटेन की सरकार ने एक श्वेत पत्र जारी किया जिसके अनुसार हर साल मे 10 हजार यहूदी परिवारों को फिलिस्तीन मे 5 सालो के लिए बसने की अनुमति होगी। उसके बाद अरबों के अनुमोदन के बाद ही वो फिलिस्तीन मे रह सकते है। यहूदियों ने इस श्वेत पत्र को सिरे से नकार दिया । अब यहूदियों और अरबों का फिलिस्तीन पर कब्जे के लिए संघर्ष भूमिगत सशस्त्र समूहो के माध्यम से शुरू हो गया जिसमे प्रकारांतर से ब्रिटेन ,नाजी और अरब देश भी सहायक होने लगे । स्वेत पत्र के बाद यहूदियों ने अरबों के साथ साथ ब्रिटेन को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया था । अब सारे यहूदी बिद्रोही समूह एकजुट होकर ब्रिटेन के अधिकारियों क्लबो और ट्रेनों को निशाना बनाने लगे । वो किसी भी प्रकार ब्रिटेन को फिलिस्तीन से बाहर कर देना चाहते थे ।
सन 1945 मे ब्रिटेन मे लेबर पार्टी की सरकार आई और उसने यहूदियों को ये आश्वासन दिया की वो ब्रिटेन सरकार के स्वेत पत्र को वापस लेंगे और यहूदियों की मातृभूमि का समर्थन करेंगे साथ ही साथ विश्व के हर कोने से यहूदियों के फिलिस्तीन मे पुनर्वसन की प्रक्रिया दोगुनी की जाएगी ।हालांकि यहूदी बिद्रोही समूहों के लिए ये आश्वासन भर सिर्फ काफी नहीं था उन्होने अवैध रूप से यहूदियों को फिलिस्तीन मे लाना जारी रखा । अमरीका और अन्य देशो ने भी अब ब्रिटेन पर फिलिस्तीन मे यहूदियों के पुनर्वास के लिए दबाव डालना शुरू किया । एक एंग्लो - अमेरिकन जांच के लिए समिति ने तत्काल 1 लाख यहूदियों के फिलिस्तीन मे पुनर्वास की सिफ़ारिश की । इसका अरबों ने विरोध किया और वो भी ब्रिटेन पर दबाव डालने लगे ॥
ये वो समय था जब ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज अस्त हो रहा था । अब ब्रिटेन के लिए फिलिस्तीन एक गले की हड्डी बन गया था ब्रिटेन ने कोई सूरत न देखते हुए उसे संयुक्त राष्ट्र के हवाले करके खुद को विवाद से अलग करने मे भलाई समझी और फिलिस्तीन के भविष्य का निर्धारण अब संयुक्त राष्ट्र के हाथो मे था ॥
संयुक्त राष्ट्र ने अर्ब और यहूदियों का फिलिस्तीन मे टकराव देखते हुए फिलिस्तीन को दो हिस्सों अरब राज्य और यहूदी राज्य(इज़राईल) मे विभाजित कर दिया । जेरूसलम जो ईसाई ,अरब और यहूदी तीनों के लिए धार्मिक महत्त्व का क्षेत्र था उसे अंतर्राष्ट्रीय प्रबंधन के अंतर्गत रखे जाने का प्रस्ताव हुआ ।इस व्यवस्था में जेरुसलेम को " सर्पुर इस्पेक्ट्रुम "(curpus spectrum) कहा गया । 29 नवम्बर 1947 को संयुक्त राष्ट्र मे ये प्रस्ताव पास हो गया । यहूदियों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया जबकि अरबों ने इसे नकार दिया। इस प्रस्ताव के अंतर्गत फिलिस्तीन को दो बराबर हिस्सों अरब राज्य और यहूदी राज्य(इज़राईल) मे विभाजित किया जाना था मगर इस विभाजन मे सीमा रेखा काफी जटिल और उलझी हुई थी। इस कारण थोड़े ही दिन मे ये परिलक्षित हो गया की ये विभाजन लागू नहीं किया जा सकेगा। इस विभाजन मे फिलिस्तीन की 70% अरब लोगो को 42% क्षेत्र मिला था जबकि यही लोग विभाजन के पहले 92% क्षेत्र पर काबिज थे अतः किसी भी प्रकार से ये विभाजन अरबों को मान्य नहीं था ।
ये वो समय था जब ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज अस्त हो रहा था । अब ब्रिटेन के लिए फिलिस्तीन एक गले की हड्डी बन गया था ब्रिटेन ने कोई सूरत न देखते हुए उसे संयुक्त राष्ट्र के हवाले करके खुद को विवाद से अलग करने मे भलाई समझी और फिलिस्तीन के भविष्य का निर्धारण अब संयुक्त राष्ट्र के हाथो मे था ॥
संयुक्त राष्ट्र ने अर्ब और यहूदियों का फिलिस्तीन मे टकराव देखते हुए फिलिस्तीन को दो हिस्सों अरब राज्य और यहूदी राज्य(इज़राईल) मे विभाजित कर दिया । जेरूसलम जो ईसाई ,अरब और यहूदी तीनों के लिए धार्मिक महत्त्व का क्षेत्र था उसे अंतर्राष्ट्रीय प्रबंधन के अंतर्गत रखे जाने का प्रस्ताव हुआ ।इस व्यवस्था में जेरुसलेम को " सर्पुर इस्पेक्ट्रुम "(curpus spectrum) कहा गया । 29 नवम्बर 1947 को संयुक्त राष्ट्र मे ये प्रस्ताव पास हो गया । यहूदियों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया जबकि अरबों ने इसे नकार दिया। इस प्रस्ताव के अंतर्गत फिलिस्तीन को दो बराबर हिस्सों अरब राज्य और यहूदी राज्य(इज़राईल) मे विभाजित किया जाना था मगर इस विभाजन मे सीमा रेखा काफी जटिल और उलझी हुई थी। इस कारण थोड़े ही दिन मे ये परिलक्षित हो गया की ये विभाजन लागू नहीं किया जा सकेगा। इस विभाजन मे फिलिस्तीन की 70% अरब लोगो को 42% क्षेत्र मिला था जबकि यही लोग विभाजन के पहले 92% क्षेत्र पर काबिज थे अतः किसी भी प्रकार से ये विभाजन अरबों को मान्य नहीं था ।
सन 1948 के मई महीने मे ब्रिटेन की सेनाएँ वापस लौट गयी हलाकी इस समय तक इज़राइल और फिलिस्तीन की वास्तविक सीमा रेखा निर्धारित नहीं हो पायी थी। अब यहूदियों और फिलिस्तीनी अरबों मे खूनी टकराव शुरू हो गया । १४ मई, १९४८ को यहूदियों ने स्वतन्त्रता की घोषणा करते हुए इज़राइल नाम के एक नए देश का ऐलान कर दिया। अगले ही दिन अरब देशों- मिस्र, जोर्डन, सीरिया, लेबनान और इराक़ ने मिलकर इज़राइल पर हमला कर दिया। इसे 1948 का युद्ध का नाम दिया गया और यही से अरब इज़राइल युद्ध की शुरुवात हो गयी। इज़राइल के इस संघर्ष को अरबों ने "नक़बा" का नाम दिया हजारो अरब बेघर हुए और इज़राइली कब्जे वाले इलाको से खदेड़ दिये गए। हालांकि इज़राइली हमेशा ये कहते आए की ये सारे अरब लोग अरब की सेनाओं को रास्ता देने के लिए भाग गए थे ,मगर इज़राइल ने एक कानून पारित किया जिसके अनुसार जो फिलिस्तीनी (अब इज़राइली अरब) नक़बा के दौरान भाग गए थे वो इज़राइल वापस नहीं आ सकते और उनकी जमीनो पर विश्व के सभी हिस्सों से आने वाले यहूदियों को बसाने लगी इज़राइली सरकार ।युद्ध के शुरुवाती कुछ महीनो मे अरब देशो की सेना इज़राइल पर भारी पड़ रही थी जून 1948 मे एक युद्ध विराम ने अरबों और इजराइलियो दोनों को पुनः तैयारिया करने का मौका दिया यही अरब देश गलती कर बैठे और इजराइलियों ने तैयारी पूरी की चेकोस्लोवाकिया के सहयोग से अब युद्ध का पलड़ा इजराइलियों की तरफ झुक गया और अंततः इजराइलियों की विजय और अरबों की इस युद्ध मे हार हुई । इसके साथ साथ शरणार्थी समस्या की शुरुवात ।
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इज़राइल फिलिस्तीन का मानचित्र समयानुसर |
1949 मे समझौते से जार्डन और इज़राइल के बीच ग्रीन लाइन नामक सीमा रेखा का निर्धारण हुआ। वेस्ट बैंक(जार्डन नदी के पश्चिमी हिस्से) पर जार्डन और गाजा पट्टी पर मिस्र(इजिप्ट) का कब्जा हो गया । इस पूरे घटनाक्रम मे लगभग 1 लाख फिलिस्तीनी बेघर हुए॥ ये सभी फिलिस्तीनी आस पास के अरब देशो मे जा शरणार्थी के रूप मे जीवन व्यतीत कर रहे थे ॥ इज़राइल को ११ मई ,१९४९ को सयुक्त राष्ट्र की मान्यता हासिल हुई । हलाकी अरब देशो ने कभी भी इस समझौते को स्थायी शांति समझौते के रूप मे स्वीकार नहीं किया । और दूसरी तरफ इज़राइल भी फिलिस्तीनी शरणार्थीयों को वापस लेने के लिए तैयार नहीं हुआ।
इसके बाद इजराइलियों और फिलिस्तीनीयों अरबों के बीच खूनी संघर्ष जारी रहा । सन 1964 मे फिलिस्तीन लिबरेशन के गठन के बाद 1965 मे फिलिस्तीनि क्रांति की शुरुवात हो गयी।फिलिस्तीन लिबरेशन का गठन इज़राइल को खतम करने के उद्देश्य से हुआ था । इधर अमरीका ने अरब मे अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए इज़राइल को हथियारों और आर्थिक मदद देनी शुरू की। जून ५,१९६७ को इजराइल ने मिस्त्र ,जोर्डन सीरिया तथा इराक के खिलाफ युद्ध घोषित किया और ये युद्ध 6 दिनो तक चला इस युद्ध ने अरब जगत के सभी समीकरणों को बदल के रख दिया इज़राइल ने 1947 के यूएन क्षेत्र से कई गुना अधिक भू भाग एवं पर कब्जा कर लिया और अब गाजा पट्टी पर भी इज़राइली कब्जा था । 6 अक्तूबर 1973 को एक बार फिर सीरिया और मिस्र ने इज़राइल पर हमला किया मगर इसमे भी उन्हे हार का सामना करना पड़ा और भूभाग गंवाना पड़ा ।1974 के अरब अरब शिखर सम्मेलन मे पीएलओ को फिलिस्तीनी लोगो का प्रतिनिधि के रूप मे अधिकृत किया । अब संयुक्त राष्ट्र संघ मे फिलिस्तीन का प्रतिनिधित्व पीएलओ के नेता यासर अराफात कर रहे थे । इसके बाद एक तरफ कंप डेविड से लेकर ओस्लो तक शांति समझौते होते रहे तो दूसरी ओर पीएलओ और मोसाद मे खूनी संघर्ष जारी था। मगर इज़राइल और फिलिस्तीन की सीमा का निर्धारण नहीं हुआ ।
मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात इज़राइल को मान्यता देने वाले पहले अरब नेता बने. अरब देशों ने मिस्र का बहिष्कार किया ।अनवर सादात ने 1977 मे इसराइली संसद में भाषण दिया. सादत ने चुकी इजराइलियो से संधि की अतः अरब चरमपंथियों ने बाद मे उनकी 1981 मे हत्या कर दी। 1987 मे फिलिस्तीनीयों ने मुक्ति के लिए आंदोलन किया और उनका इज़राइली सेनाओं से टकराव शुरू हो गया । 13 सितंबर 1993 को अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की मध्यस्थता मे इज़रायली प्रधानमंत्री यित्साक राबीन और फिलस्तीनी स्वायत्त शासन के अध्यक्ष यासिर अराफत ने नार्वे की राजधानी ओस्लो मे ओस्लो शांति समझौता किया, समझौता के अनुसार इज़राइल 1967 से अपने क़ब्ज़े वाले फिलस्तीनी इलाकों से हटेगा। एक फिलस्तीनी प्रशासन स्थापित किया जाएगा और एक दिन फिलस्तीनियों को एक देश के तौर पर स्वतंत्रता मिलेगी। गाजा पट्टी के फिलिस्तीन के कब्जे मे आते ही हमास की हिंसक गतिविधियां और तेज हो गयी और उसी अनुपात मे इज़राइली प्रतिरोध । ओस्लो समझौते से जिस अरब इज़राइल संघर्ष पर विराम लगता प्रतीत हुआ समस्या पुनः वही आ के खड़ी हो गयी॥ समय समय पर हमास द्वारा इज़राइल पर गाजा पट्टी से हमले किए जाते रहते हैं और इज़राइल के लिए अपने नागरिकों की आत्मरक्षा के लिए बार बार युद्ध ॥॥इजरायल हर हमले के बाद कहता है की वो हमास को निशाना बना रहा है लेकिन अरब देश इन हमलो मे आम मुसलमानो के मारे जाने की बात कहते हैं॥ इस्लाम यहूदी और ईसाई धर्म के उत्पत्ति काल से जुड़ी हुई ये समस्या अरब और पश्चिमी जगत के सामरिक हितो के कारण और भी जटिल होती जा रही है आज भी लाखो फिलिस्तीनी शरणार्थी घर वापसी की रह देख रहे हैं तो दूसरी ओर इज़राइल हमास के हमलो से निपट रहा है।
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गाजा पट्टी पर इज़राइली बमबारी का एक दृश्य |
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