आज एक अनजान से
विषय से सामना हुआ किसी मित्र के घर बैठे हुए एक स्वनामधन्य स्वयंभू सावरकर और
गोडसे के तथाकथित उत्तराधिकारी से मुलाक़ात का सौभाग्य(??) प्राप्त हुआ ।
हिन्दुत्व की बड़ी बड़ी ड़िंगे हाँकने वाले संगठन के तथाकथित मुखिया से मैंने
एक दो सुझाव और प्रश्न पूछ लिए । जब तक उनकी हाँ मे हाँ मिलता रहा तब
तक ठीक था जैसे
ही उन्हे लगा की उनका सामना पाकिस्तानी हिंदुओं और हिन्दू अत्याचार जैसे मुद्दो पर
होगा उन्होने जबाब न देते हुए मेरे लिए एक टिप्पणी दी की ये बचकाने सवाल है और
तुममे बचपना है । मालूम हो की उस महापुरुष ने अपनी उम्र 44 साल बताई और
मै अपने जीवन के 31 वर्ष पूरे कर चुका हूँ । उनके अनुसार आज कल की जेनरेशन समझ ही
नहीं सकती ।
मैंने सोचा क्यू न कुछ हिन्दुस्थान के महापुरुषों को आज याद करे इससे कम से कम हमारे तथाकथित नेता जी लोगो के इतिहास ज्ञान की पुनरावलोकन करने का एक मौका भी मिलेगा।
1 विवेकानंद: 39 साल का
पूरा जीवन और 32 साल की उम्र मे पूरे विश्व मे हिन्दुत्व का डंका बजाने
वाले निर्विवाद महापुरुष।
2 रानी लक्ष्मी बाई: 30 साल की उम्र मे अंग्रेज़ो के खिलाफ क्रांति का नेतृत्व करने वाली अमर बलिदानी झाँसी वाली रानी।
3 नथुराम
गोडसे : 39 साल की अल्पायु मे गांधी को मोक्ष दिया और हिंदुस्थान के हिंदुओं के हृदय
सम्राट।
4 भगत सिंह: 23 वर्ष की
अल्पायु मे बलिदान। भगत सिंह भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। भगतसिंह ने
देश की आज़ादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया, वह आज के युवकों के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श है। इन्होंने केन्द्रीय संसद
(सेण्ट्रल असेम्बली) में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप
इन्हें २३ मार्च, १९३१ को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया।
5 सुखदेव: 33 साल की
अल्पायु मे २३ मार्च १९३१ को इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ लाहौर सेण्ट्रल
जेल में फाँसी के तख्ते पर झूल कर अपने नाम को हिन्दुस्तान के अमर शहीदों की सूची
में अहमियत के साथ दर्ज करा दिया ।
6 चन्द्रशेखर आजाद
: 25 साल की उम्र मे बलिदान : चन्द्रशेखर
आज़ाद ने वीरता की नई परिभाषा लिखी थी। उनके बलिदान के बाद उनके द्वारा प्रारम्भ
किया गया आन्दोलन और तेज हो गया, उनसे प्रेरणा लेकर
हजारों युवक स्वरतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े। आजाद की शहादत के सोलह वर्षों बाद
१५ अगस्त सन् १९४७ को हिन्दुस्तान की आजादी का उनका सपना पूरा तो हुआ किन्तु वे
उसे जीते जी देख न सके। आजाद अपने दल के सभी क्रान्तिकारियों में बड़े आदर की
दृष्टि से देखे जाते थे। सभी उन्हें पण्डितजी ही कहकर सम्बोधित किया करते थे। वे
सच्चे अर्थों में पण्डित राम प्रसाद 'बिस्मिल' के वास्तविक उत्तराधिकारी जो थे।
7 मंगल पांडे: सन् १८५७ के प्रथम
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रदूत थे। क्रांति के समय और फांसी दिये जाने के
समय इनकी उम्र 30 साल थी ।
8 राम प्रसाद
बिस्मिल: काकोरी कांड के
क्रांतिकारी । 28 साल की उम्र मे काकोरी कांड से अंग्रेज़ सत्ता हो हिला के रख दिया
और 30 साल की उम्र मे बलिदान।
9 खुदीराम बोस : भारतीय स्वाधीनता
के लिये मात्र १९ साल की उम्र में हिन्दुस्तान की आजादी के लिये फाँसी पर चढ़ गये।
। मुज़फ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने उन्हें फाँसी पर लटकाने का आदेश सुनाया
था, उसने बाद में बताया कि खुदीराम बोस एक शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर
फाँसी के तख़्ते की ओर बढ़ा था। जब खुदीराम शहीद हुए थे तब उनकी आयु 19 वर्ष थी।
शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक ख़ास
किस्म की धोती बुनने लगे।
10 करतार सिंह साराभा:19 साल की उम्र मे लाहौर कांड के अग्रदूतों मे एक होने के कारण फांसी की सजा । देश के लिए दिया गया सर्वोच्च बलिदान।
11 अशफाक़
उल्ला खाँ:27 साल की उम्र मे देश के लिए प्राणो की आहुती देने वाले
वीर हुतात्मा।
12 उधम
सिंह : 14 साल की उम्र से लिए अपने प्रण को
उन्होने 39 साल की उम्र मे पूरा किया और देश के लिए फांसी चढ़े। उन्होने
जालियाँवाला बाग हत्याकांड के उत्तरदायी जनरल डायर को लन्दन में जाकर गोली मारी और
निर्दोष लोगों की हत्या का बदला लिया।
13 गणेश शंकर विद्यार्थी: 25 साल की उम्र से सक्रिय 40
साल की उम्र मे हिन्दुत्व की रक्षा के लिए बलिदान।
14 राजगुरु:भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे । 23 साल की उम्र मे इन्हें भगत सिंह और सुखदेव के साथ २३ मार्च १९३१ को फाँसी पर लटका दिया गया था ।
14 राजगुरु:भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे । 23 साल की उम्र मे इन्हें भगत सिंह और सुखदेव के साथ २३ मार्च १९३१ को फाँसी पर लटका दिया गया था ।
15 राजीव
दीक्षित: आधुनिक भारत मे 23 साल की उम्र से ही आजादी बचाओ
आंदोलन की नींव रक्खी 43 साल की उम्र मे हत्या।
कम से कम इन उदाहरणो से हम ये तो कह ही सकते हैं की व्यक्ति के बुद्धिलब्धि (Intelligence quotient) का मानक उसकी उम्र है ??? और यदि है तो बुद्धिलब्धि के मामले मे समान्य युवा तथाकथित हिन्दुत्व के दुकानदारो से ज्यादा बुद्धिलब्ध है। ऐसी सोच संकुचित मानसिकता की पराकाष्ठा को दिखाती है। कम से कम ऐसे उत्तराधिकारी को देख महात्मा गोडसे की आत्मा खुश तो नहीं ही हो रही होगी। चलिये कम से कम इसी कारण से हिंदुस्थान के महान वीर एक बार फिर याद किए गये।
जय श्री राम
लेखक : आशुतोष नाथ तिवारी