
हालाकि तुलना गलत होगी मगर इस आन्दोलन की असफलता मेरे मानस पटल पर कभी कभी भारतीय स्वाधीनता संग्राम की १८५७ की असफल क्रांति का काल्पनिक रेखाचित्र खिंच कर जाती है,जिसमें अनेक अग्निवेश जैसे दलाल पुरे आन्दोलन में इधर उधर मुंह मारते रहे और आन्दोलन के दो मुख्य स्तम्भ बाबा रामदेव और अन्ना हजारे एक दुसरे को लंगड़ी मारने में व्यस्त रहे और कांग्रेस रूपी ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने दमनचक्र चला कर सबको साध लिया..
दरअसल अप्रैल से अन्ना आन्दोलन के बाद ने ही कांग्रेस सरकार ने अपनी साम दाम दंड भेद अपनाकर अन्ना टीम की विश्वसनीयता लोगो के बीच खत्म करने का एक कुत्सित प्रयास शुरू कर दिया था...हालाँकि अन्ना के तथाकथित सेकुलर प्रबंधको का अति आत्मविश्वास भी उन्हें ले डूबा...ये वही अन्ना टीम है जिसका जनता से परिचय बाबा रामदेव ने कराया और उसके बाद इनलोगों ने लोकपाल आन्दोलन में बाबा को शामिल करने के लिए ढेर सारी शर्तों का एक सेकुलर पिटारा खोल दिया.. खैर बाबा को जैसे तैसे भ्रष्टाचार विरोधी जनान्दोलन का श्रेय लेने से बहुत सफाई से किनारे कर दिया,ज्ञात रहें की ये वही बाबा रामदेव हैं जिन्होंने सालो से भ्रष्टाचार और कालेधन के विरोध में अभियान छेड़ रखा है..

४ जून को बाबा के आन्दोलन को निर्ममता से कुचल दिया गया और इस निर्ममता का जनाक्रोश अन्ना को दुसरे अनशन में जनसमर्थन के रूप में मिला.जिसे अन्ना प्रबंधको ने अपने नेतृत्व क्षमता विजय के रूप में देखा..बाबा रामदेव के आन्दोलन को निर्ममता से कांग्रेस सरकार द्वारा कुचलने के बाद अन्ना जैसे भी थे एक उम्मीद की किरण के रूप में परिलक्षित होने लगे.मैं व्यक्तिगत रूप से(या मेरे जैसे लाखो हिंदुस्थानी) यही सोचते रहे की अन्ना दुसरे अनशन में अपार जनसमर्थन के बूते पर सरकार से कुछ न कुछ हासिल कर लेंगे इसी उम्मीद में सुबह से शाम अनशन स्थल पर पड़े रहे मगर परिणाम वही ढ़ाक के तीन पात..अन्ना टीम को गाँधी बनने का ऐसा चस्का लगा था की हर बार एक नए समझौते और भारत रत्न की आस लिए जूस पीते और जनता सर पिटते हुए फिर अपने घर..इसके बाद अन्ना टीम के उल जलूल निर्णय जैसे पहले नेताओं को मंच पर न फटकने देना फिर उनके घर घर जा के कटोरा फैलाना..कभी कश्मीर को हिन्दुस्थान से बाहर कर देना तो कभी कुमार विश्वास का हिन्दू देवी देवताओं का अपमान करना.. हिन्दुस्थान जैसे देश में कांग्रेस जैसी कुटिल देशद्रोही सरकार को ९ महीने का समय देना एक आन्दोलन का पिंडदान करने के लिए पर्याप्त था और वही हुआ कांग्रेस से सुनियोजित तरीके लोकपाल बिल की हत्या कर दी और बाकी विपक्षी दलों ने भी प्रत्यक्ष तो कभी अप्रत्यक्ष कांग्रेस का समर्थन किया,क्यूकी पूरी राजनैतिक जमात जनता के गुस्से से घबरायी हुई थी और ये सब उस संसद और लोकतंत्र की गरिमा के नाम पर हुआ जिसमें अपराधियों,देशद्रोहियों और भारत का ८०% कालाधन रखने वालो की उपस्थिति पंजिका रक्खी जाती है..
अन्ना ने फिर अनशन किया मगर अबकी बार जनता फिर किसी मुगालते में नहीं आने वाली थी शायद अंदेशा था इस बार भी अन्ना टीम एक कांग्रेसी सेकुलर प्रेमपत्र दिखाकर उसपर अमल न किये जाने की सूरत में अगले अनशन की तारीख का शुभ महूर्त निकलवाकर सब हिन्दुस्थानियों को निमंत्रण भेजती..
मुंबई जो की अन्ना का गृहराज्य था वह इतनी भी भीड़ नहीं जुटी की अन्ना अपना अनसन ३ दिन तक भी रख पायें इसका कारण कांग्रेस के प्रति सहानुभूति न होकर अन्ना टीम से मोहभंग होना था..शायद जनता ने अपनी लूट को नियति मानकर, नयी अनशन की तारीख लेने की बजाय कुछ दिन और इस लूट को स्वीकार कर लेने का विकल्प चुना था
अंततः इस आन्दोलन की विफलता से कांग्रेस को देश को लूटने की तात्कालिक आजादी और अन्ना टीम के प्रबंधको के लिए एक अच्छी खासी उर्वरा राजनैतिक जमीन बनाने का मौका तो मिला ही है..
मीडिया के कैमरों से दूर बाबा रामदेव,सुब्रमण्यम स्वामी ने अभी तक राष्टवाद और भष्टाचार मुक्त भारत का झंडा उठा रखा है,मगर सावन के सेकुलर अंधों को हरे से ज्यादा प्यार नजर आता है..एक सामान्य नागरिक की तरह यही उम्मीद है की शायद कांग्रेसी शासन के मकडजाल से कोई मुक्ति दिलाये और भारत में सच्चा लोकतंत्र स्थापित हो.....
मित्रों बधाइयों का दौर चलने वाला है कल से ,सेकुलर नहीं हूँ और अंग्रेज भी नहीं इसलिए ,मेरी तरफ से हिन्दू नव वर्ष(२३ मार्च २०१२ ) की अग्रिम बधाइयाँ..