रविवार, 4 अक्तूबर 2020

हाथरस घटना न्याय या राजनीति

हाथरस घटना पर  बहुत लिखा पढा गया। यह स्थापित सत्य है की एक लड़की की जान गई है। यहां शुरुवात में तीन पक्ष हैं, पुलिस प्रशासन, पीड़िता का परिवार,आरोपी लड़के। पुलिस ने लापरवाही और मनमानी किस हद तक कि यह पता लगाना जरूरी है। जैसे जैसे नेताजी लोग आते गए FIR में नये नये नाम और धारायें जुड़ती चली गई। जातिवाद से ग्रस्त कुंठित मानसिकता के कीड़े जातिवाद वाली नाली में खूब छपाछप भी किये। उनके लिए एक पूरी बिरादरी बलात्कारी और खूनी हो गई जबकि उनमें से कई पिस्सू सहूलियत के अनुसार उन्ही के टुकड़ों पर पलते हैं। एक और पक्ष आया नारीवाद का झंडा उठाये उनके अनुसार विश्व के सभी मर्द बलात्कारी,हत्यारे होते हैं सम्भव है उसमें इनके बाप,भाई परिवार के सदस्यों ने इनका शोषण कर कर के इस लायक बनाया की ये विश्व के सभी मर्दों को गरिया कर टीआरपी बटोर सके। एक पक्ष वामपंथियों का है जो हर बात में हिन्दू धर्म और मान्यताओं को गरियाने का कारण ढूंढ लेंगे अब वो रक्षाबंधन,नवरात्रि पर बेटीयों की पूजा,भगवान राम, कृष्ण,मंदिर सबको आडंबर बताते हुए अपना एजेंडा चलाने लगे। 

      इन सब के बीच कुछ उत्कृष्ट किस्म के बेवकूफ  हैं जो कॉपी पेस्ट की विचारधारा से बुद्धिजीवी का बाल बनने की कोशिश कर रहे हैं। कॉपी पेस्ट को बुरा नही मानता क्योंकि ज्ञान पर कॉपीराइट नही है मगर उसके लिए थोड़ी बुद्धि लगा लो। वामपंथी अपना लिखा नैरेटिव ,फ़ोटो आपको पकड़ाते हैं और आप हर घटना के बाद बुद्धिजीविता दिखाने के चक्कर में कॉपी पेस्ट चेंप कर उनका काम आसान करते हैं। कोई नारीवादी,कोई दलित चिंतक तो कोई हिन्दू धर्म को गरियाने लगेगा। दरअसल ऐसा करके आप अपने व्यक्तित्व को हल्का और हास्यास्पद बना लेते हैं। वापस मुद्दे पर आते हैं , घटना राष्ट्रीय  मुद्दा न बने इसके लिए प्रशासन ने साम दाम दंड भेद सब अपनाया। उनके अपने कारण हो सकते हैं मगर जो सरकार राम मंदिर के फैसले के बाद शांति बनाए रख सकती थी वो अंतिम संस्कार भी सुबह होने पर शांति से करवा सकती थी मगर ऐसा क्यों नही हुआ यह कारण समझ से बाहर है और वह जल्दीबाजी बहुतों पर भारी पड़ गई। कुल मिलाकर इस प्रकरण में न्याय मांगने और न्याय देने के अलावा सब हुआ। पैसे से लेकर नौकरी, प्लाट से लेकर धमकी सब कुछ दिया गया। दूसरे ओर से राजनीति और आपदा को अवसर में बदलने की बारगेनिंग की राजनिति भी होती रही। मेडिकल रिपोर्ट अब तक ये कह रही है कि रेप की पुष्टि नही हुई (रिपोर्ट सही है या गलत यह जांच का विषय है)। पीड़िता के दो तीन बयान रिकॉर्डेड हैं। एप्लिकेशन में कभी एक आदमी द्वारा मारपीट, फिर क्रमशः दो, तीन,चार द्वारा मारपीट और फिर गैंगरेप जोड़ा गया। तटस्थ रूप से देखें तो यह कारनामा पुलिस के दबाव में भी हो सकता है और यह नेताजी के उकसावे में भी हो सकता है। अब इसपर सबके अलग अलग वर्जन हैं। फिर न्याय कैसे होगा?? दबाव में या न्याय देने के लिए सरकार ने पुलिस, आरोपी और पीड़ित के परिवार का नार्को और पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए कहा है। मेरे समझ से इसमें किसी को समस्या नही होनी चाहिए। यदि कोई भी आरोपी इसके खिलाफ कोर्ट में अर्जी देता है तो प्रथमदृष्टया यह स्वतः सिद्ध हो जायेगा कि वो अपराध में शामिल था। पुलिस के नार्को टेस्ट से यह पता चल जाएगा कि रिपोर्ट न लिखने के आरोप में क्या सच्चाई है क्या उन्होंने दबाव में रिपोर्ट में बदलाव किए। और सबसे अहम पीड़िता  का परिवार उसकी बेटी चली गई खोने को कुछ नही है, करवा लो नार्को जिससे यह आरोप भी खत्म हो जाये कि नेताओं के उकसावे पर केस में बहुत बातें झूठ जोड़ी गई। परिवार के पास छिपाने के लिए अगर कुछ है नही तो नार्को पॉलीग्राफी से कोई समस्या नही होनी चाहिए । अगर नार्को पॉलीग्राफ के लिए तीनों में से कोई ऐसा पक्ष है जो तैयार नही होता है तो स्वाभाविक रूप से उसकी ओर उंगली उठेगी चाहे आरोपी हो, पुलिस हो या पीड़ित... 

मेरा स्पष्ट मत है कि जो भी हो लडक़ी के हत्यारे को जल्द से जल्द फाँसी मिले या चौराहे पर गोली मार कर उसका लाइव टेलीकास्ट करा दिया जाए मगर राजनीति के कारण किसी निरपराध को न फँसाया जाये इसलिए जांच जरूर है। आशुतोष की कलम से

शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2017

जनगणमन- जार्ज पंचम का स्तुतिगान या भारत का राष्ट्रगान ?

लेख लंबा है अतः समय निकाल के ही पढें.जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता....
रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा लिखित यह गीत भारत के का राष्ट्रगान है इस गीत को लेकर कुछ सच कुछ मिथक और कुछ पूर्वाग्रह है मेरे कई मित्रों ने इस पर मुझे अपना विचार देने के लिए कहा परंतु मैं स्वयं ही इस मुद्दे पर निर्णय और संशय की स्थिति में था अतः कुछ लिखने से भरसक बचता था परंतु समस्या से भागना उसका समाधान नहीं अतः इस गीत की सत्यता को भी हमें ढूंढना और स्वीकार करना होगा।

जनगणमन अधिनायक जय हे,
भारत भाग्य विधाता...
तो इन पंक्तियों में "अधिनायक" अर्थात "डिक्टेटर या किंग" कौन है? कौन है भारत का भाग्य विधाता गुरुदेव की लिखी इस कविता में ?? तव शुभ आशीष मांगेगाहे तव जय गाथा..आखिर इन पंक्तियों में किसकी "जय गाथा" गाते हुए उससे आशीष माँगा जा रहा है??

दो घटनाएं एक ही समय पर घट रही थी पहली 27 दिसंबर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन शुरू होना था और दूसरा 30 दिसम्बर को भारतको गुलाम बना के रखने  वाले ब्रिटेन का राजा जार्ज पंचम कलकत्ता पधारने वाले था।
यदि आप ये सोच रहे हैं की कांग्रेस का अधिवेशन जार्ज पंचम के दौड़के विरोध की रणनीति के लिए था तो आप बिलकुल ही गलत हैं, इस अधिवेशन में जार्ज पंचम के प्रति निष्ठा और सम्मान प्रकट करते हुए इस अधिनायक पर पूरी श्रद्धा व्यक्त की गई थी। यदि उस समय के विभिन्न घटनाओं और भारतीय और बिदेशी अख़बारों में छपी ख़बर का संदर्भ लेकर जनगणमन के इतिहास की कड़ियों को जोड़े तो जनगणमन अधिनायक गीत "जार्ज पंचम के स्वागत के लिए लिखा गया गीत प्रमाणित होता है.."
ये आज से लगभग 106 साल पहले की बात है उस समय " वंदेमातरम" शब्द सांप्रदायिक नहीं हुआ करता था उस समय हिंदू मुसलमान सभी धर्मों के अनुयाई एवं क्रांतिकारी वंदे मातरम भारत माता की जय के नारे के साथ फांसी के फंदे पर झूल जाते थे कांग्रेस एवं अन्य पार्टियों की जो अधिवेशन भी होते थे उनका प्रारंभ वंदे मातरम गीत के साथ ही होता था। अब जॉर्ज पंचम के भारत आने के समय के कुछ अखबारों की रिपोर्टों को मैं आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं जिसमें जन गण मन अधिनायक गीत के बारे में लिखा गया है।

● ‘
कांग्रेस पार्टी के अधिवेशन की शुरुआत ईश्वर की प्रशंसा में गाए गए एक बंगाली मंगलगान से हुई। इसके बाद किंग जॉर्ज पंचम के प्रति निष्ठा जताते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया। बाद में उनका स्वागत करते हुए एक गाना गाया गया।अमृत बाजार पत्रिका 28 दिसम्बर
●‘कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन महान बंगाली कवि रवींद्रनाथ टैगोर के लिखे एक गीत से प्रारंभ हुआ। उसके बाद किंग जॉर्ज पंचम के प्रति निष्ठा व्यक्त करते हुए एक प्रस्ताव पारित हुआ।द बंगाली 
● “When the proceedings of the Indian National Congress began on Wednesday 27th December 1911, a Bengali song in welcome of the Emperor was sung. A resolution welcoming the Emperor and Empress was also adopted unanimously.” (Indian, Dec. 29, 1911)
●“The Bengali poet Rabindranath Tagore sang a song composed by him specially to welcome the Emperor.” (Statesman, Dec. 28, 1911)
● "The proceedings began with the singing by Rabindranath Tagore of a song specially composed by him in honour of the Emperor.” (Englishman, Dec. 28, 1911)


इन सारी रिपोर्टों को यदि एक साथ देखा जाये तो ये स्पष्ट है कि "जन गण मन" प्राथमिक रूप से तो जार्ज पंचम के सम्मान के गीत के रूप में ही गाया गया। सामान्यतया  हम सभी जनगणमन के पहले पैरा को गाते हैं हम सभी जनगणमन यदि गीत के अन्य पांक्तियों को देखें तो ज्यादा स्पष्टता से इस मुद्दे को समझ जा सकता है।
सम्पूर्ण जनगणमन सुनने के लिए यहाँ देखें



जनगणमन  की एक पंक्ति कहती है..

पूरब-पश्चिम आशे
तव सिंहासन पाशे
प्रेमहार हय गांथा।
जनगण-ऐक्य-विधायक जय हे
भारत भाग्यविधाता!
जय हेजय हेजय हे
जय-जय-जय-जय हे
इन पंक्तियों मे पूरब पश्चिम के सिंहासन किसको माला पहनाते थे इसका स्वाभाविक उत्तर है वह ब्रिटेन और उसका राजा जार्ज पंचम..
जनगणमन की एक और पंक्ति कहती है..
तव करुणारुण रागेनिद्रित भारत जागे
तव चरणे नत माथा।
जय-जय-जय हेजय राजेश्वर,
भारत भाग्यविधाता,
इन पंक्तियो में किस राजेश्वर की बात हो रही है जिसके चरणों मे मस्तक झुकाया जा रहा हैसम्भवतः जार्ज पंचम..


तो स्थितियां यही बताती हैं कि यह गीत जार्ज पंचम के लिए ही लिखा गया था। सबसे बड़ी बात ये है कि उस समय अखबारों और मीडिया में इस जार्ज पंचम के स्तुति गीत की जो खबरें छपी थी उनका विरोध कभी रविन्द्र नाथ टैगोर जी ने नही किया। ऐसा भी माना जाता है कि जार्जपंचम अपने इस स्तुतिगान से इतना प्रभावित था कि इसका पारितोषिक रविन्द्र नाथ टैगोर को "गीतांजली" के लिए "साहित्य का नोबल" के रूप में दिया गया।


मगर अब इसके दूसरे पक्ष को देखें तो इस घटना के के सालों बाद जब आजादी आंदोलन ने जोकर पकड़ा और "वंदे मातरम" मुस्लिम लीग के कट्टर नेताओं को साम्प्रदायिक लगने लगा तब अचानक 25 साल बाद गुरुदेव का इस गीत पर स्पष्टीकरण आया. स्पष्टीकरण के समय जलियावाला बाग़ हत्याकांड हो गया था,भगतसिंग राजगुरु सुखदेव को  सरकार ने फांसी के फंदे पर लटका दिया था अतः इस गीत को लेकर रविन्द्रनाथ टैगोर की घोर आलोचना होने लगी इससे विचलित रविन्द्र नातं टैगोर ने जो स्पष्टीकरण दिया वो इस प्रकार है..10 नवंबर 1937 को पुलिन बिहारी सेन को लिखे उनके पत्र से भी पता चलता है। उन्होंने लिखा- “ मेरे एक दोस्तजो सरकार के उच्च अधिकारी थेने मुझसे जॉर्ज पंचम के स्वागत में गीत लिखने की गुजारिश की थी। इस प्रस्ताव से मैं अचरज में पड़ गया और मेरे हृदय में उथल-पुथल मच गयी। इसकी प्रतिक्रिया में मैंने जन-गण-मन’ में भारत के उस भाग्यविधाता की विजय की घोषणा की जो युगों-युगों सेउतार-चढ़ाव भरे उबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरते हुए भारत के रथ की लगाम को मजबूती से थामे हुए है। नियति का वह देवता’, ‘भारत की सामूहिक चेतना का स्तुतिगायक’, ‘सार्वकालिक पथप्रदर्शक’ कभी भी जॉर्ज पंचमजॉर्ज षष्ठम् या कोई अन्य जॉर्ज नहीं हो सकता। यह बात मेरे उस दोस्त ने भी समझी थी। सम्राट के प्रति उसका आदर हद से ज्यादा थालेकिन उसमें कॉमन सेंस की कमी न थी।
19 मार्च 1939 को उन्होंने पूर्वाशा’ में लिखा– ‘अगर मैं उन लोगों को जवाब दूंगाजो समझते है कि मैं मनुष्यता के इतिहास के शाश्वत सारथी के रूप में जॉर्ज चतुर्थ या पंचम की प्रशंसा में गीत लिखने की अपार मूर्खता कर सकता हूँतो मैं अपना ही अपमान करूंगा। संभवतः ये उत्तर देते समय गुरुदेव ने जनगणमन अधिनायक जय हे की इस पंक्ति का जिक्र किया है..

पतन-अभ्युदय-बन्धुर-पंथाजुग-जुग धावित जात्री,
हे चिर-सारथितव रथचक्रे मुखरित पथ दिनरात्रि
दारुण विप्लव-माझेतव शंखध्वनि बाजे,
संकट-दुःख-त्राता।
जन-गण-पथ-परिचायक जय हे
भारत भाग्यविधाता,
जय हेजय हेजय हे....
इससे ये स्पष्ट है कि
रविन्द्र नाथ टैगोर को जार्ज पंचम के स्वागत के लिए एक गीत लिखने को कहा गया था..
रविन्द्र नाथ टैगोर ने असमंजस में स्वागत गीत लिखा भी था जो “जन गण मन अधिनायक जय हे “ के रूप में जार्ज पंचम और क्विन मेरी के सम्मुख गाया भी गया था.
सन 1911 में यह बात अखबारों में आई परन्तु इसका विरोध उस स्तर पर नहीं हुआ अतः गुरुदेव ने स्पष्टीकरण भी नहीं दिया . चूकी रविन्द्रनाथ टैगोर का परिवार के कई सदस्य अंग्रेजों के साथ कार्यरत थे और उनके मधुर सम्बन्ध थे अतः असमंजस की स्थिति में रविन्द्रनाथ टैगोर ने एक ऐसा गीत लिखा जिसके कुछ हिस्से से तो भारत और उसके इतिहास का वर्णन हो और कुछ हिस्से से भारत के “तथाकथित अधिनायक” जार्ज पंचम की स्तुति भी हो जाये जिससे की समय आने पर जार्ज पंचम स्तुतिगान के कलंक से बचा जा सके..

अब इसको यदि सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें तो मैं एक उदाहरण भारत का और एक उदाहरण ब्रिटेन का देना चाहूँगा..भारत में अंग्रेजो द्वारा भारत में बनाई गई एक बिल्डिंग है जिसे पहले “वायसराय हाउस” कहते थे, कभी ब्रिटेन की राजसत्ता का भारत में प्रतीक रहा “वायसराय हाउस” आज भारतीय लोकतंत्र के सबसे पद और तीनो सेनाओं के मुखिया “भारत के राष्ट्रपति” के औपचारिक निवास “राष्ट्रपति भवन” के रूप में जाना जाता है.हमारे देश की बिल्डिंग थी क्या हम इसे तोप लगवा के इसलिए उड़ा देते की अंग्रेजो ने बनाया है ? नहीं, हमने आजादी के पास उसका नाम बदला और भारत के स्मारक के रूप में मान्यता दी...
दूसरा उदाहरण “कोहिनूर हीरे” का है महाराजा रणजीत सिंह ने जिस हीरे को जगन्नाथ मंदिर में दान कर दिया था उसे ब्रिटेन की महारानी अपने मुकुट में लगाकर पुरे विश्व में उसे अपना घोषित करती रही. उसे कभी ऐसा नहीं लगा की उस ब्रिटिश साम्राज्य जिसका सूरज कभी अस्त नहीं होता उसकी महारानी के मुकुट को, एक राजा द्वारा एक मंदिर को दान किया गया हीरा सुशोभित करेगा...

यही बात जन गण मन  अधिनायक पर भी लागू होती है ..हमारे देश के लेखक ने एक गीत लिखा था जिसका गुलाम भारत में भले ही उस समय के भारत के तथाकथित भाग्यविधाता “जार्ज पंचम” के लिए उपयोग किया गया मगर भारत ने अपना अधिनायक और भाग्य विधाता बदल दिया है . जनगणमन लिखते समय भावना या परिस्थिति जन्य मज़बूरी जो भी रही हो मगर 
मनुष्यता के इतिहास के शाश्वत सारथी कोई जार्ज पंचाम नहीं हो सकता और ये बात स्वयं लेखक ने भी अपने स्पष्टीकरण में कही है..आज भारत आजाद है, वायसराय हाउस अब राष्ट्रपतिभवन बन चुका है  और अब जन गण मन किसी “राजा का स्तुतिगान “ न होकर भारत के स्तुतिगान के रूप में मान्यता पा चुका है.. हमने जनगणमन .... को अपना कर अपना हक़ वापस लिया है ,और प्रत्येक भारतवासी के मन में जनगणमन गाते समय उस भारत देश की छवि रहती है जिसके लिए भगत,राजगुरु चंद्रशेखर जैसे लाखो क्रांतिकारियों ने अपना जीवन होम कर दिया..

इतने शोध के बाद ये मेरा निर्णय है की जनगणमन ...मेरे लिए मेरी राष्ट्र आराधना का गीत है जिसे गाने में मुझे कोई समस्या नहीं आप का निर्णय क्या है ये आप के ऊपर छोड़ता हूँ ....
वन्दे मातरम् ,भारत माता की जय 


सूचना स्रोत : इतिहास संकलन विभाग,गूगल वेबसाइट्स ,

गुरुवार, 7 सितंबर 2017

गौरी लंकेश हत्या : एक नागरिक की हत्या या एक बौद्धिक आतंकवादी का अंत

1999 में कारगिल का युद्ध हो रहा था, मैं छात्र जीवन में था.उस समय सोशल मीडिया और अन्य संसाधनों की पहुच न होने के कारण करगिल नाम भी युद्ध से पहले नही सुना था.न ही बाकी ज्ञान बहुत ज्यादा था..रेडियो या टीवी पर रोज युद्ध की खबरे सुनता था। कई बार खबर आती थी की फलाने चौकी पर लड़ाई में हमारे 7 जवान मारे गए और पाकिस्तानियों ने आंख में गोली मारी, सर में गोली मारी आदि..मन दुखी होता था, हालाँकि वो सैनिक मेरे घर के नही होते थे, मगर भारत की रक्षा के लिए जान गवाने वाला हर व्यक्ति स्वाभाविक रुप से हम सभी के कुटुंब का होगा क्योंकि उसका जीवन हमारे लिए लड़ते हुए बीत गया,अतः दुःख होता था। ज
ब किसी दिन खबर आती थी,पाकिस्तान के 8 या 10 सैनिक मारे गए तो मन में प्रसन्नता और आत्मसंतुष्टि होती थी जबकि मारे जाने वाले दुश्मन देश के सैनिक से मेरी कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नही होती थी..बस ये लगता था कि इन लोगो ने हमारे सैनिको की जान ली है, अतः मारे गये पाक सैनिको से कोई सम्वेदना नही..और ये विचार मेरा अकेला नही था भारत के 90% जनता को पाकिस्तानी सैनिकों के मरने पर खुश होती थी...
आज सोशल मीडिया का युग है। भारत में एक ऐसा वर्ग है जिसने भारत से बौद्धिक और हथियार वाला, दोनो युद्ध छेड रखा है..जब उनके हथियार वाले नक्सली, हमारे सैकड़ो CRPF के जवानों को मारते हैं,उनके अंग तक काट ले जाते हैं तब उसी गद्दार देशद्रोही दोगली मानसिकता के कुछ जेएनयू के बौद्धिक वामपंथी नक्सली जेएनयू में CRPF जवानों के मारे जाने का जश्न मनाते हैं,और नक्सलियों का तीसरा डोमेन जो बौद्धिक आतंकवादी टाइप पत्रकारों का है वो जवानो की हत्या को टीवी डिबेट,अखबार,पत्रिका में सही ठहराते हुए जवानो को बलात्कारी हत्यारा बोलता है..
ये लोग पाकिस्तानी सैनिको से ज्यादा खतरनाक हैं। ये हमारे आपके बीच में रहते हैं,भारत की बर्बादी के जंग के नारे लगाते हैं,आतंकवादी अफजल को हीरो और स्वतंत्रता सेनानी कहते हैं, और इनकेे पास मीडिया और अखबार के एक बड़े वर्ग का नियंत्रण है...
दो दिन पूर्व इसी भारत विरोधी गैंग के बुद्धिजीवी डोमेन वाली एक पत्रकार(??) गौरी लंकेश  की हत्या अज्ञात लोगों ने कर दी..हत्या होते ही मुझे उन CRPF जवानों की लाशें याद आ गई जिनको बुरी तरह से काट पीट कर मारने के बाद पेट चीरकर उसमें बम लगा दिया था इन वामपंथियों ने...उन जवानों की हत्या को जायज और सही ठहराते हुए "लंकेश पत्रिका" में, 6 माह की सजायाफ्ता स्वर्गीय "गौरी लंकेश" ने कई आर्टिकल लिखे थे..उस समय कोई हो हल्ला नही हुआ क्योंकि भारत के सैनिक वोट बैंक नही हैं।।
विरोध किसी भाजपा या कांग्रेस के विरोधी पत्रकार का नही है। सामान्यतया आदर्श पत्रकारिता सत्ता के विरोध में रहती ही है। विरोध #भारत_विरोधी_मानसिकता का है। बस ये याद रखिये की आज हम करगिल से बड़ी जंग लड़ रहे है। दुश्मन घर में है,वो कभी जेएनयू में भारत की बर्बादी के नारे लगाते है, कभी जंतर मंतर पर आतंकवादी अफजल के लिए आंदोलन करता है तो कभी टीवी पर जोकरों के साथ स्क्रीन काला करता है।।
और मुझे अपने भारतीय सैनिकों की हत्या में शामिल या समर्थन करने वाले किसी भी व्यक्ति (चाहे वो नेता हो,या पत्रकार या कोई और...) की मृत्यु पर उतना ही दुख,सम्वेदना और कष्ट है,जितना कारगिल युद्ध के समय एक पाकिस्तानी सैनिक के मारे जाने की खबर पर होता था..
भारत का संविधान इतना "सहृदय" है कि वो कसब के लिए भी वकील मुहैया कराता है,वो रात को 2 बजे याकूब के लिए भी सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करता है..."लंकेश " को भी न्याय मिले,मेरी भारत के संविधान में पूरी आस्था है..
आशुतोष की कलम से

सोमवार, 21 अगस्त 2017

कर्नल श्रीकांत पुरोहित: एक अनकही व्यथा....The Untold Colonel Shrikant Purohit

एक सेना का अफसर जो 9 साल से आतंकवाद के आरोप में भारतीय जेल में है । सेना उसे हर माह वेतन देती है.......
मित्रों कर्नल पुरोहित को आज  जमानत मिल गई , मगर कर्नल पुरोहित केस क्या है और क्यों कर्नल पुरोहित को इतने दिनों अकारण जेल में रखा गया ??? यह जानने के लिए आपको यूपीए के हिन्दुविरोधी कांग्रेसराज में जाना पड़ेगा.याद कीजिये जब कांग्रेस के शासन में आये दिन भारत के कई हिस्सों में, सिमी के इस्लामिक आतंकवादी बम फोड़ा करते थे। कभी संकटमोचन मंदिर,कभी दिल्ली,कभी जयपुर कभी हैदराबाद तो कभी अहमदाबाद....पूरे भारत ने बमों से चिथड़े हुई लाशों को देखने को अपनी नियति मान लिया था।
उस समय कर्नल पुरोहित को भारतीय सेना ने सीक्रेट मिशन पर भेजा ,कर्नल श्रीकांत पुरोहित का कार्य भारत के इस्लामिक जेहादी संगठनों में "मुसलमान" बनकर पैठ बनाना था,जिससे कि उन्हें देश में होने वाले अगले हमले का पता चले और वो सिमी के इस्लामिक आतंकवाद के मॉड्यूल को तोड़ सके.इधर देश में रोज हो रहे बम ब्लास्ट में मुस्लिम युवको की संलिप्तता और धर पकड़ के कारण कांग्रेस दबाव में थी कि उसका मुसलमान वोट बैंक छिटक न जाये..मगर दूसरी ओर कार्यवाही का दबाव भी था क्योंकि सरकार कांग्रेस की थी.
कांग्रेस ने उस समय मीडिया के कुछ दलालों की सहायता से "हिन्दू आतंकवाद" "भगवा आतंकी" "सैफरॉन टेरर" की कहानियां गढ़ने की प्लानिंग की और इसी क्रम में तत्कालीन कांग्रेसी गृहमंत्री ने "हिन्दू आतंकवाद" वाला बयान दिया था।
ईधर कर्नल पुरोहित विभिन्न इस्लामिक आतंकवादी संगठनों में मुसलमान बनकर अपनी पैठ बना रहे थे,बम विस्फोट के पैसों लिए फंडिंग कहां से होती है इसकी खोजबीन करते-करते उनके हाथ, नकली नोटों के कारोबारियों और कांग्रेसी राजनेताओं की साठगांठ से संबंधित सबूत लग गए..यदि ये सूचना कर्नल पुरोहित सार्वजनिक कर देते तो राजनैतिक बिरादरी में बहुत बड़ी उथल पुथल हो जाती और तत्कालीन कांग्रेस सरकार यूपीए सरकार के गिरने का खतरा भी था। इसलिए कांग्रेसी नेताओं और नकली नोट के व्यापारियों ने यह प्लान बनाया कि, इससे पहले कि कर्नल पुरोहित इसका नकली नोट द्वारा आतंकवादियों की फंडिंग का खुलासा करें, इनको किसी केस में फंसा दिया जाए ... इसी समय कांग्रेस सरकार "हिंदू आतंकवाद" वाली थियरी को स्थापित करना भी चाहती थी और कर्नल पुरोहित इसके सबसे अच्छे शिकार थे, क्योंकि वह पहले से ही विभिन्न इस्लामिक संगठनों में पैठ बना रहे थे और सेना के आदेश पर, कुछ हिंदू संगठनों में भी उन्होंने अपने संबंध बनाए थे जिससे कि उन्हें इन्वेस्टीगेशन के लिए तथ्य मिल सके।
कर्नल पुरोहित को मालेगांव ब्लास्ट में विस्फोटक मुहैया कराने के आरोप में फसा दिया। जबकि जब मालेगांव ब्लास्ट हुआ तो कर्नल पुरोहित भोपाल की एक सेना के कैंप में अरबी भाषा की ट्रेनिंग ले रहे थे,जिससे कि वह आतंकवादियों के बीच आसानी से अपनी पैठ बना सकें।
कर्नल पुरोहित पत्र के अनुसार उन्हें 24 अक्टूबर 2008 को भोपाल से ड्यूटी से अस्थाई डिस्चार्ज देकर दिलली मुख्यालय भेजा गया मगर कांग्रेस के इशारे पर अधिकारियों ने उन्हें, सेना नियमो का उलंघन करते हुए मुम्बई एटीएस के हवाले कर दिया. मुम्बई एटीएस के मुखिया कुख्यात हिन्दू विरोधी,कांग्रेस भक्त और दिग्विजय सिंह के इशारे पर कार्य करने वाले "हेमंत करकरे " थे..(हेमंत करकरे मुम्बई हमले में पाकिस्तानी आतंकियों की गोली का शिकार बन गए थे मगर का घटना को इस लेख से न जोड़ा जाए)
हेमंत करकरे ने कांग्रेस के इशारे पर लगभग एक सप्ताह तक खंडाला में कर्नल पुरोहित को टार्चर कराया और ये दबाव बनाया कि कर्नल पुरोहित मालेगाँव ब्लास्ट में अपना हाथ स्वीकार कर लें, जिससे कि हिन्दू आतंकवाद वाली कांग्रेस की काल्पनिक थियरी को देश विदेश में प्रचारित कर हिंदुओं को भी आतंकवादी के रूप में स्थापित किया जाए। लगभग एक हफ्ता घिर प्रताडना के बाद 5 तारीख को कर्नल पुरोहित की गिरफ्तारी दिखाई गई। कर्नल पुरोहित को धमकी दी गई कि उनकी पत्नी,बहन,माँ को उनके सामने नंगा किया जाएगा..मगर कर्नल पुरोहित ने झूठे आरोप स्वीकार नही किये तो अंत में एटीएस मुखिया करकरे ने धमकाकर कुछ अन्य अधिकारियों का बयान कर्नल पुरोहित के खिलाफ लिया और उन अधिकारियों ने भी बाद में न्यायालय में इस बात का खुलासा किया कि उनको धमकी देकर कर्नल के खिलाफ बयान लिया गया। तत्कालीन एटीएस मुखिया हेमंत करकरे को हिन्दू आतंकवाद को फर्जी तरीके से फैलाने का ठेका कांग्रेस ने दिया था इसी क्रम में उन्हीने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर भी अमानवीय अत्याचार किये..उनका भगवा वस्त्र उतार लिया गया,उनके मुह मे माँस डाला गया और तो और एक हिन्दू साध्वी को करकरे के इशारे ओर प्रताड़ित करते हुए ब्लू फ़िल्म जबरिया दिखाई गई..साध्वी के एक परिचित को बुलाकर साध्वी के सामने नंगा किया गया....खैर हेमंत करकरे के इस पाप की सजा उसे जल्द ही मिल गई,मुम्बई हमलों में पाकिस्तानी आतंकियों की गोली से वो मारे गए।हेमंत करकरे उस इस्लामिक आतंकवाद का शिकार बने जिसको बचाने के लिए वो कांग्रेस के इशारे पर फर्जी "हिन्दू आतंकवाद" शब्द स्थापित करने के लिए साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित समेत दर्जनों पर अमानवीय अत्याचार करते रहे..
ध्यान दीजियेगा की हेमंत करकरे की मृत्यु के बाद सबसे ज्यादा हल्ला दिग्विजय और कांग्रेस ने मचाया था और कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने तो 26/11 के आतंकवादी हमलों को आरएसएस की साजिश बताते हुए एक किताब भी लांच कर डाली...
यहां दो आवश्यक बिंदु आप से और साझा करना चाहूंगा..

● जिस कर्नल पुरोहित पर इतना बड़ा आतंकवाद में लिप्त होने का आरोप लगा उस कर्नल पुरोहित के खिलाफ 9 साल में (6 साल कांग्रेस और 3 साल भाजपा) इनके शासन काल में, सबूत तो दूर की बात ATS और NIA को #चार्जशीट फाइल करने लायक भी तथ्य नही मिले..
● भारतीय सेना ने कर्नल पुरोहित को आतंकवादी या आतंकवाद में सहयोग करने वाला नही माना. कांग्रेस ने भले ही पुरोहित को जेल में डाल दिया मगर यदि जितेन्द्र चर्तुर्वेदी और मधु किश्वर की रिपोर्ट को माने तो सेना ने 9 साल के जेल में रहने के बाद भी न तो कर्नल पुरोहित को सस्पेंड किया न उनका वेतन रोका..उनके खाते में हर माह वेतन पहुचता रहा.. उनको इंक्रीमेंट मिलता रहा ..वो सेना के अफसर बने रहे...अगर कर्नल पुरोहित आतंकवादी थे, तो एक आतंकवादी को भारतीय सेना 9 साल से वेतन दे रही है और अपना अफसर क्यों मान रही है?? और सरकार चुप क्यों थी?? 
क्योंकि पूरी भारतीय सेना कर्नल के साथ थी.आज कोर्ट से कर्नल पुरोहित को जमानत मिल गई ,साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ भी कांग्रेसी फर्जी सबूत नही बना पाए..मगर मातृभूमि की रक्षा के लिए तत्पर इस सेना के अफसर के 9 साल कौन काँग्रेसी नेता वापस करेगा??? हिंदुओं को आतंकवादी साबित करने की कांग्रेस की थियरी की हवा तो निकल गई मगर क्या कांगड़ा द्वारा हिन्दू समाज को कलंकित करने की इस थियरी पर हिन्दू समाज प्रतिउत्तर देगा या मौन बना रहेगा.....
नमन और शुभकामनाएं कर्नल श्रीकांत पुरोहित..भारत को आप जैसे सैनिक,नागरिक और हिन्दू  पर गर्व है..
आशुतोष की कलम से

गुरुवार, 10 अगस्त 2017

दूसरा पक्ष: योगी जी को एक अध्यापक का पत्र


पत्र का कंटेंट यूपी के अलग अलग हिस्सों के सरकारी स्कूलों के अध्यापको के अलग अलग अनुभव से संकलित है।
........................
प्रिय मुख्यमंत्री महोदय,
उत्तर प्रदेश की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था सुधारने की आप की पहल अत्यंत ही स्वगतयोग्य कदम है। महोदय सामान्यतया समाज में सरकारी मास्टर की प्रायोजित छवि एक नाकारा,हारमखोर टाइप व्यक्ति की बनाई जाती है ।
एक सरकारी प्राइमरी स्कूल का अध्यापक आप से कुछ अपने मन की बात साझा करना चाहता है।
मेहनत से पढ़ाई किया,CTET पास किया और मेरिट में आया तो ये नौकरी मिली। बहुत कुछ करना चाहता था मगर नियुक्ति पत्र मिलने से पहले किस विद्यालय पर जाना है,इसका निर्धारण "विशेष व्यस्था" के तहत हुआ और चूकी ईमानदारी का कीड़ा मेरे अंदर था अतः उस विशेष व्यवस्था का हिस्सा नही बना और अपने मकान से 50 किलोमीटर दूर का एक विद्यालय मिला। फिर भी खुश था की "कर्तव्य पथ पर जो मिला यह भी सही वह भी सही" गुनगुनाते हुए ज्वाइन करने गया तो मेरे एक वरिष्ठ की टिप्पणी थी "नया नया जोश है थोड़े दिन में ठंढा हो जाएगा"..मैने ये सोचा की सम्भबतः मेरे वरिष्ठ काम नही करना चाहते इसलिए ऐसा कह रहे हैं।

महोदय अब अपना पहला दिन बताता हूँ। अपने घर से 50 किलोमीटर दूर अनजान गांव में, सुबह सुबह स्कूल गया तो हमारे हेडमास्टर साहब झाड़ू कुदाल लेकर लेकर कुत्ते और बिल्ली की टट्टी साफ कर रहे थे। समय का तकाजा देखते हुए मैने भी सफाई के लिए हाथ बढ़ाया तो उन्होने मुस्कराते हुए कहा "माटसाहब आदत डाल लीजिये"..मैने पूछा सफाई कर्मचारी कहा है??? वो आता है 10-15 दिन में एक बार ...मैने कहा कम्प्लेन कीजिये विभाग में... फिर वही जबाब मिला "नया नया जोश है ठंढ़ा हो जाएगा मास्टरसाहब......"बाद में उन्होंने बताया स्थानीय नेताओं के घर सफाईकर्मी काम करता है, हम इतनी दूर इस गांव में लड़ाई कैसे करें?? विभाग में ऊपर तक पहुच है नेता जी की...जैसे तैसे कुछ बच्चे आये और एक बारामदे में बैठकर शोर मचाने लगे मैने कहा एक से पाँच तक अलग अलग बैठाते हैं जबाब मिला "नया नया जोश........" वैसे बाद में समझ आया कि अध्यापक दो हैं कमरे तीन हैं और पढ़ाना 1 से 5 तक के लड़कों को है..तीन कमरों में से एक ओर गांव के किसी व्यक्ति ने कब्जा किया था। एक कि हालत ऐसी थी कि फर्श टूटा ऊपर से छत टपक रही थी..खैर कुछ छात्रों को एकमात्र बचे अपेक्षाकृत अच्छे कमरे में बैठाया और कुछ को सामने के बागीचे में आम के पेड के नीचे झाड़ू लगा कर। एक बच्चे ने कहा गुरु जी दीजिये मैं झाड़ू लगा दूँ तो अचानक याद आया की हर गली में कैमरे लेकर स्वनामधन्य पत्रकार टाईप वीर घूम रहै हैं,बच्चे से झाड़ू लगवाने के आरोप में नौकरी भी जाएगी। खैर झाड़ू लगा के कक्षा 3,4,5 को पेड़ के नीचे बैठाया और हेडमास्टर साहब 1 और 2 को एक साथ बैठाकर पढाने लगे। महोदय मैंने देखा कि आप के RTE के नियम के तहत ऐसे लडके को कक्षा 4 में प्रवेश देने के लिए बाध्य था जिसे क ख ग वर्णमाला नही आता था। अब मुझे वो अलादीन का चिराग ढूंढना था, जिससे कि उस बच्चे को सिलेबस के हिसाब से "प्रकाश संश्लेषण" पढा सकूं जिसे वर्णमाला भी नही आती..सबसे कॉपी निकालने को कहा तभी मेरे हेडमास्टर साहब ने बुलाया, मास्साहब जल्दी आइये। पढ़ाना छोड़ उनके पास गया तो उन्होंने कहा की पढ़ाई बाद में होगी,ऊपर आए आदेश आया है की दिए गए फार्मेट में स्कूल बच्चों आदि की डिटेल 2 घंटे मे देना है। चपरासी,सफाईवाला,अध्यापक के बाद अब मैं क्लर्क बन चुका था,हालांकि पहाडा पढ़ने को कहा था ,कुछ बच्चे पढ़ते रहे और कुछ पास के बगीचे में खेलने लगे हल्ला मचाने लगे,RTE ऐक्ट के तहत आप ने मेरे हाथ से डंडा छीन लिया है,फेल कर नही सकता,नाम काट नही सकता..अतः कुछ ज्यादा कर नही सकता था।
2 घंटे बाद वो लिस्ट विभाग को पहुचाने गया क्योंकि डाकिया और कुरियर वाला भी मैं ही हूँ..

वापस आया तो मिड डे मील बन चुका था हेडमास्टर साहब ने "खाना चेक किया गया" वाले कालम में रजिस्टर पर साइन करने को कहा। मैं चेक करने गया.. रजिस्टर में सब्जी दाल और रोटी थी मगर बनी तो खिचड़ी थी ,खाने की कोशिश किया दो चम्मच भी नही खा पाया, अभी तक जिंदा बची रही अंतरात्मा रो रही थी कि ये खाना बच्चे कैसे खाएंगे? मैने हेडमास्टर साहब से बताया, उन्होंने बोला कि इमोशनल मत होइए खाना मैं नही बनाता मुखिया जी बनवाते हैं ।जो बनवाते थे उनके पास गया तो जबाब था कि "नया नया आये हैं मास्साहब..बगल के गांव में चूल्हा ही नही जला महीनों से, उससे तो बहुत अच्छे हैं हम" वैसे भी आप पढाने मे ध्यान दीजिए घर बार से दूर आये हैं नौकरी करने न कि लड़ाई करने.हताश हो के हेडमास्टर साहब के पास गया और कहा कि कम्प्लेन करूँगा। उन्होंने कहा की ये भी कर लो "नया नया जोश है...." मैने तुरंत अधिकारी को फोन लगाया और स्थिति बताई उन्होने कहा मास्टर साहब  प्रेक्टिकल बनिये एडजेस्ट करके चलना पड़ता है।थोड़ी ही देर में मुखिया जी की XUV विद्यालय गेट पर थी।मेरे कम्प्लेन की जानकारी उनतक पहुच गई थी। मुखिया जी ने मुझे पुनः अपने दो मुस्टंडों के साथ खड़ा हो के समझाया मास्टर साहब सिस्टम में आप नए हैं, आराम से पढ़ाइये दो चार दिन न भी आएंगे तो हम लोग देख लेंगे कोई समस्या नही होगी ।हम ये अकेले नही लेते, सब तक पहुचता है।कम्प्लेन का फायदा नही..बगल के एक गांव के मास्टर की गांव वालों द्वारा कुटाई का उदाहरण भी दे दिया गया..ख़ैर ये हरामखोर बनने और अपना जमीर बेचने का पहला दिन था जिसकी गवाही मिड डे मील के रजिस्टर पर किया गया मेरा हस्ताक्षर चीख चीख के दे रहा था..आज की पढ़ाई पूरी हुई..

महोदय अगले दिन मुझे गांव मे जा के सर्वे करना था क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कोई डेटा मांगा था जिसको तुरंत देना था । अतः अगले दिन मैं सफाईकर्मी,चपरासी के बाद मास्टर नही बन पाया उस दिन सर्वेयर बना रहे..बच्चे बागीचे में खेलते रहे.. हेडमास्टर साहब कभी कक्षा 1 तो 2 तो कभी 5 के बच्चे को संभालते रहे.. 3 -4 दिन बाद मैं के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया तो आधो के पास कॉपी पेंसिल नही। पूछने पर बताया कि पापा बम्बई कमाते हैं पैसा भेजेंगे तो खरीदा जाएगा,कुछ ने कहा कि अगले हफ्ते बाजार से ले आएंगे..महोदय हमारा सत्र तो अप्रैल से शुरू हो जाता है मगर किताब मिलना शुरू होती है जुलाई से और अर्धवार्षिक परीक्षा बीतने के बाद भी पूरी किताबे नही मिलती।कई विषयों की किताबें पूरे साल नही मिली।पता करने पर जबाब आया जब छप के आएगा मिल जाएगा। सरकार का काम है ऐसे ही होगा..रोपिया सोहनी और कटिया के समय बच्चे खेतो में जाते हैं और अधिकारीगण हमारे पीछे की बच्चे कहाँ है।महोदय पढ़ाई के लिए सोशल अवेयरनेस वाले प्रोग्राम का बजट किस गड्ढे में जाता है जो हम मास्टर कटिया में सहायता करने के लिए भी तैयार होते हैं...क्योंकि बच्चा तभी आएगा जब कटिया हो जाएगा..
कुछ बच्चे एक दिन चौराहे पर मिले और बताया कि गुरु जी अब मैं बोरे पर जमीन पर बैठकर नही पढूंगा .. शिशु मंदिर में 50 रुपया फीस है और बेंच पंखा दोनो है..उधर सरकार की ओर से अध्यापको को गुणवत्ता मेंटेन करने की वार्निंग जारी हो चुकी थी। बोरे पर टपकती छत में 2 अध्यापक,गुणवत्ता के साथ क्लर्क,चपरासी,स्वीपर की नौकरी के बाद 1 से 5 क्लास को पढ़ाते हुए । सुना है मि लार्ड ने बेंच लगवाने को कहा था मगर आज तक वो कागज से आगे नही आया...

ख़ैर चूंकि "नया नया जोश था अतः पढ़ाना जारी रखा.."खुद के घर से बोरा ले आया,कॉपी पेंसिल बच्चों को दी अब भी वो घर से काम करके नही आते क्योंकि उनके अभिभावक की काउंसलिंग का काम भी हमारा है और वो हम कर नही पाते क्योंकि पापा बम्बई कमाते हैं मम्मी पर्दा करती है,बाबा अनपढ़ है।। 6 माह बीत गए, मुझे सफाईकर्मी,चपरासी,क्लर्क,सर्वेयर,और समय मिले तो मास्टर की नौकरी करते करते..किताबे अब भी पूरी नही जो मिली भी वो बच्चे के बस्ते मे धूल खा रही है।बच्चे वर्णमाला सीख गए किताब अब भी नही पढ़ पाते.. साहब की चेकिंग हुई ।।पीठ थपथपाई गई..ये तो क ख ग भी नही जानते थे मास्साहब आप ने कमाल कर दिया 3 का बच्चा अब वर्णमाला सुना सकता है। मैं कुंठित गर्व के साथ छद्म संतुष्टि के अहंकार में मुस्करा दिया...

मैंने कमरे फर्श छत और चटाई की बात की...हाँ हाँ सब मिलेगा..सब कुछ नोट करके साहब ले गए..चेकिंग हुए 4 माह बीत गए ..कुछ नही बदला......सुना है साहब की बदली होने वाली है..आज साहब से मिलने गया.. सर वो बच्चे आज भी पेड़ के नीचे ही पढ़ते हैं..कुछ व्यवस्था.....तभी साहब ने बीच में रोकते हुए कहा शासन से फंड अगले 6-8 महीने में आएगा ..उसके बाद जो अधिकारी होगा उसको एप्लिकेशन दीजियेगा..बारिश आती रही बच्चे खेलते रहे..छत टपकती रही बच्चे खेलते रहे..मैं कुर्सियां तोड रहा था मैं धीरे धीरे मैं हरामखोर हो रहा था..ड्रेस वितरण शुरू है और उसी "विशेष व्यवस्था" के तहत ड्रेस खरीदना है..वही जो बताई गई है ..

अचानक एक दिन अन्तरात्मा जाग गई.. मिड डे मील से लेकर ड्रेस..स्कूल की चटाई थाली से लेकर टपकती छत..सफाईकर्मी की गैरहाजरी से लेकर विशेष व्यस्था का काला सच फाइल में बना कर डीएम कार्यालय दे आया..सम्भबतः डीएम साहब ने वार्निंग दे दी साहब को...

और आज सुबह मेरा विद्यालय 8 बजकर एक मिनट पर चेक हुआ..हेडमास्टर साहब 8 बजकर 5 मिनट पर आने के अपराध में स्पष्टीकरण देंगे और शिक्षण अधिगम में कमी पाई जाने कर्तव्यों का सम्यक निर्वाहन न करने के कारण मैं निलबिंत करके किसी अन्य गांव में भेज दिया गया...मुखिया जी क़ह रहे हैं मैने पहले कहा था सब सिस्टम है मास्साहब..मगर आप का "नया नया जोश ले डूबा आपको........."

6माह बाद......

संस्पेंशन वापस  हो चुका है..मेरी नियुक्ति घर के पास के एक विद्यालय में हो चुकी है..मैने "विशेष व्यवस्था" को स्वीकार कर लिया है...मुखिया जी बहुत खुश हैं मुझसे ..मास्टरी के साथ साथ ई रिक्शा चलवाने का बिजनेस शुरू कर दिया है...अब मेरी अंतरात्मा मर चुकी है।। क्या करता कितने दिन संस्पेंड रहता व्यवस्था से लड़कर...परिवार को भूख से मरने से बचाने के लिए मैंने अपनी अंतरात्मा को मार दिया...मैं हरामखोर हो गया..
क्यों बना?? किसने बनाया??छोड़िये ये सब महोदय ये मास्टर होते ही हैं नाकारा कामचोर..
धन्यवाद..

आशुतोष की कलम से
(सरकारी अध्यापकों की व्यथा कथा)

रविवार, 28 मई 2017

वीर सावरकार का माफीनामा (Truth of Mercy Petitions of Vinayak Damodar Savarkar)

आज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे अग्रणी नाम वीर सावरकर जी की जयन्ती है..उनकी जीवनी तो कहीं न कहीं पढ़ ही लेंगे आप मगर एक बात जो अक्सर कुत्सित विरोधी विचारधारा के लोग बोलते हैं,उसका निवारण जरूरी है.. वामपंथ और गांधी परिवार की पार्टी के लोगो का कहना है की सावरकर ने अंग्रेजो के सामने घुटने टेक दिए थे और माफ़ी मांगी थी..
अब इस प्रसंग पर आने से पहले कुछ और तथ्य जानना आवश्यक है.सावरकर ने इंग्लैण्ड में बैरिस्टरी की परीक्षा पास की मगर इन्होने "ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति सदैव वफादार रहने" की शपथ लेने से मना कर दिया और इसी कारण इन्हें डिग्री नहीं दी गयी...
एक तथ्य ये भी है की महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू भी इंग्लैंड से "डिग्रीधारी बैरिस्टर" थे..ऐसा तो है नहीं की नेहरू और गांधी के लिए नियम बदले होंगे हाँ गांधी जी ने और नेहरू जी ने छात्र जीवन में ही
"ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति सदैव वफादार रहने" की शपथ ले ली थी अतः वो डिग्री धारी हो गए और सावरकर ने "अंग्रेजो का दलाल" बनने की शपथ नहीं ली तो उन्हें डिग्री नहीं मिली..
स्वतंत्रता संग्राम में वीर सावरकर गांधी,नेहरू समेत लाखो लोग शामिल थे मगर जब नेहरू और गांधी को अंग्रेज गिरफ्तार करते थे,तो वो लोग जेल में आमलेट का नाश्ता करते हुए अखबार पढ़ते हुए समय बिताते थे और वीर सावरकर को अंडमान की जेल(काला पानी) में अत्यंत कठोर सज़ा के तहत दिनभर कोल्हू में बैल की जगह खुद जुतकर तेल पेरना, पत्थर की चक्की चलाना, बांस कूटना, नारियल के छिलके उतारना, रस्सी बटना और कोंड़ो की मार सहनी पड़ती थी।
वीर सावरकर को, नेहरू की तरह जेल में खाने के लिए आमलेट नहीं मिलता था उन्हें कोड़ो की मार मिलती थी और लाइन लगा कर दो सूखी हुई रोटिया.
वीर सावरकर को, गांधी की तरह मीटिंग करने की इजाजत नहीं होती थी उन्हें तो अपनी बैरक में भी बेड़ियों में जकड़कर रखा जाता था।
आखिर अंग्रेज सावरकर से इतना भयभीत क्यों थे और नेहरू गांधी पर इतनी कृपा क्यों?? याद कीजिये इंग्लैण्ड में ली गयी "ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति सदैव वफादार रहने" की शपथ".... जो नेहरू ने तो ली थी मगर सावरकर को स्वीकार नही थी..
●अब आते हैं ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति सदैव वफादार रहने" की शपथ" ले चुके कांग्रेसियों के प्रश्न पर कि सावरकर ने अंंग्रेजो से माफ़ी मांगी थी??
प्रसंग ये था की सावरकर की प्रसिद्धि से भयभीत अंग्रेजो ने उन्हें काला पानी भेज दिया और भयंकर यातनाएं दी..अंग्रेज चाहते थे की सावरकर की मृत्यु यही हो जाये.ऐसा ही हो भी रहा था,भयंकर शारीरिक एवं मानसिक यातना और पशुओं जैसे बेड़ी में जकड कर रखने के कारण सावरकर को कई गंभीर बिमारियों ने पकड़ लिया था और लगभग वो मरने वाले थे..मगर देश को क्रांतिकारियों को ऐसे वीर की जरूरत थी.क्योंकि जंग मरकर नहीं जीती जाती.. ऐसे समय में काला पानी जेल के डॉक्टर ने ब्रिटिश हुकूमत को रिपोर्ट भेजी कि सावरकर का स्वास्थ्य अत्यंत ख़राब है और वो थोड़े दिनों के और मेहमान हैं..इस रिपोर्ट के बाद, जनता के भारी दबाव में सन् 1913 में गवर्नर-जनरल के प्रतिनिधि रेजिनाल्ड क्रेडॉक को पोर्ट ब्लेयर सावरकर की स्थिति जानने के लिए भेजा गया.. उस समय काला पानी से निकल कर भारत आकर क्रांति को आगे बढ़ाना प्राथमिकता थी,अतः वीर सावरकर ने अंग्रेजो के इस करार पत्र को स्वीकार किया और कई अन्यों को भी इसी रणनीति से मुक्त कराया,जिसका फार्मेट निम्नवत है..
"मैं (....कैदी का नाम...)आगे चलकर पुनः (....) अवधि न तो राजनीती में भाग लूंगा न ही राज्यक्रांति में.यदि पुनः मुझपर राजद्रोह का आरोप साबित हुआ तो आजीवन कारावास भुगतने को तैयार हूँ"
यहाँ ये ध्यान देने योग्य बात है कि अंग्रेजो के चंगुल से निकलने के लिए,ऐसा ही एक पत्र शहीद अशफाक उल्ला खाँ ने (जिसे कुछ लोग क़ानूनी भाषा में माफिनामा भी कह सकते हैं) भी लिखा था मगर अंग्रेज इतने भयभीत थे की उन्हें फाँसी दे दी.. तो क्या अशफाक को भी अंग्रेजो का वफादार, देश का गद्दार मान लिया जाए?? माफ़ कीजिये ये क्षमता मेरे पास नहीं मेरे लिए अशफाक देशभक्त और शहीद ही हैं,हाँ कांग्रेस या वामपंथी ऐसा कह सकते है..
"सावरकर ब्रिटिश राजसत्ता के वफादार होंगे" ऐसा उस समय का मूर्ख व्यक्ति भी नहीं मानने वाला था तो फिर अंग्रेज कैसे विश्वास करते...रेजिनाल्ड क्रेडोक ने सावरकर की याचिका पर अपनी गोपनीय टिपण्णी में लिखा "सावरकर को अपने किए पर जरा भी पछतावा या खेद नहीं है और वह अपने ह्रदय-परिवर्तन का ढोंग कर रहा है। सावरकर सबसे खतरनाक कैदी है। भारत और यूरोप के क्रांतिकारी उसके नाम की कसम खाते हैं और यदि उसे भारत भेज दिया गया तो निश्चय ही भारतीय जेल तोड़कर वे उसे छुड़ा ले जाऍंगे।"
इस रिपोर्ट के बाद कुछ अन्य कैदियों को रिहा किया गया मगर भयभीत अंग्रेजो में वीर सावरकर को जेल में ही रक्खा .लगभग एक दशक इसके बाद काला पानी जेल में बिताने के बाद 1922 में वीर सावरकर वापस हिन्दुस्थान आये..
अब आप स्वयं निर्णय कर लें की "अंडमान की जेल में कोल्हू में जूतने वाले सावरकर" अंग्रेजों के वफादार थे या "एडविना की बाहों में बाहें डालकर कूल्हे मटकाने वाले चचा नेहरू" अंग्रेजो के ज्यादा करीब थे....

आशुतोष की कलम से

शुक्रवार, 26 मई 2017

हे उज्मा तुम आईना हो भारत में रहने वाले पाकिस्तानी भारतीयों का

#उज्मा
उज्मा ने तो पाकिस्तान में, किसी के प्रेम के चक्कर में धोखा खाया और वापस आई तो, जो सर अल्लाह के अलावा कहीं न झुकाने का फरमान "सऊदी अरब" से मिला है उसे मानने से इंकार करते हुए , वो सर मातृभूमि के लिए झुक गया..और हाँ किसी बजरंगदल या आरएसएस के दबाव में नहीं .और बस एक इसी कारण चाहे तुमने 5  शादियाँ की या 15,तेरे सारे गुनाह माफ़ है उज्मा..
मगर लाखों हैं इस ओर, जिन्होंने उस ओर का पाकिस्तान नहीं देखा।उनकी पीढियां हिन्दुस्थान का खा रही हैं हिन्दुस्थान में रह रही हैं,मगर दिल पाकिस्तान के लिए धड़कता है..आँखे खोलो और देखो, तुम्हारी बिटिया को भी नहीं छोड़ा पाकिस्तानी गिद्धों ने। जीपी सिंह नामक "काफ़िर डिप्लोमेट"ने इसे दूतावास् में अपनी बिटिया की तरह रक़्खा और एक सुषमा स्वराज नाम की भाजपाई संघी बिदेश मंत्री ने दिन में चार चार बार फोन करके इसे ढांढस दिया और सुरक्षित वापस घर ले आई...मगर तुम समझोगे नहीं,बिना दोजख देखे पाकिस्तान जिंदाबाद करना छोड़ोगे नहीं.
अब जब कभी वंदे मातरम साम्प्रदायिक लगे,भारत माता की जय काफिराना लगे और पाकिस्तान के लिए प्यार उमड़े,तो एक बार अपनी बिटिया को अच्छे से देखकर उज्मा की कहानी याद कर लेना।
हे उज्मा तुम आईना हो भारत में रहने वाले पाकिस्तानी भारतीयों का....स्वागत है उज्मा....

नोट : पोस्ट का उद्देश्य उज्मा जो भारत की बेटी बनाना या महिमामंडन नहीं है बल्कि उन भारतीय मुस्लिमो और सेकुलर हिन्दुओं को पाकिस्तान का सच बताना है जो पाक के प्रति संवेदना रखते हैं,

आशुतोष की कलम से